Wednesday, November 21, 2007

बचपन की कुछ यादे - भाग १

आज कुछ खास वजह नही है इस ब्लोग को लीख्ने की, बस यूँही अकेला बैठा बीबीसी हिंदी की कुछ कहानिया पढी और अपना बचपन याद आ गया। अब बचपन तो सबका एक जैसा होता है। कम से कम मेरी हम उम्र सबका बचपन एक जैसा था, चाहे वो किसी छोटे शहर में रहे हो या बडे में। मेरी बचपन कि कुछ धुंधली सी यादे मेरे नाना जी के घर कि हैं। उनका घर पहली मंजिल पे था जहा जाने कि सीधी सीधिया थी। एक गंदे से बदबूदार नाले के किनारे वो घर था। सड़क के उस पार एक पार्क था जिसमे एक मंदिर भी था। इन सब बातो कि तसदीक मेरी मा भी करती हैं। मेरे नाना के घर के नीचे एक और परिवार रहता था जिन्हें मैं नीचे वाली नानी कहता था। उनके हाथो मेने दाल और रोटी बहुत खाई है। कुछ धुंधला सा मुझे भी याद है, पता नही मेरी माँ ने बताया इस लिए या वाकई मेरी याददाश्त इतनी तेज थी क्योंकि ४ बरस कि उम्र में हमने वो घर छोड़ दिया।
मेरे पिता जी कि नौकरी एक छोटे से शहर के चीनी मिल में थी। वो घर तो मुझे अछे से याद है। खपरैल का बड़ा सा माकन, सामने खूब बड़ी खेती लायक जमीन जहा हमेशा बैंगन, टमाटर मूली उगी रहते थे। घर कि चौखट से अन्दर जाते ही एक बड़ा सा आंगन जहा बाई और एक टिन शेड मी सूखी लाकदिया और कोयला नहरे रहती थे। दाहिनी और शौचालय और स्नानागार थे। उसके बाद एक पानी का पाइप लगा था शायद बर्तन मांजने के लिए। दाहिनी और ही उस खुले पानी के पाइप के बात रसोई घर था। अन्दर से केसा था इसकी कोई याद नही। रसोई घर कि दीवार तक आँगन ख़त्म था। फिर बाये हाथ पर एक दरवाजा था जो कमरों का प्रवेश था। अन्दर शायद एक सीधी गैलरी थी या कुछ कमरे थे। कुछ ठीक २ याद नही। दर असल ५ बरस तक होते २ मेरा समाया मेरे नाना और मेरे पापा के बीच में कटा। अब जो कुच्छ आधी अधूरी यादे हैं बस यही हैं।
पर हाँ एक बात अछे से याद है और वो है चीनी मिल के गेट पर एक मंदिर। रोज़ सुबह वहा आरती होती थी और हम उस आरती के बाद एक बताशे का प्रसाद लेने पहुंच जाते थे। हमारे घर के पीछे कि खिड़की चीनी मिल के अन्दर खुलती थी जहा एक सुन्दर सा बाग़ था जिसमे गुलाब के फूल लगे थे। मुझे आज भी अछे से याद है कि एक बार उस बाग़ में पर्दा लगा के एक फिल्म दिखाई गयी थी और मैं खिड़की पर बैठ कर वो फिल्म या शायद फिल्म दिखने वाले प्रोजेक्टर और तरीके को देख रह था, मेने अपन खाना भी खिड़की पे बैठ के खाया था। पापा के यह मिल मी जाने का सबसे आसान तरीका था कि गेट पे जाओ गर्द अंकल को बताओ कि फलने आदमी बेटे हैं और बस..आप मिल के अन्दर। खैर ये सब तो थी ५ बरस तक कि धुंधली यादे...

No comments: