Monday, June 23, 2008

Is it a luxary or bondage?

कभी एक छोटे बच्चे को देखा है? कुछ दिन पहले ही हमारे घर एक नया मेहमान आया है। मेरी बहिन को एक छोटा सा प्यारा सा शिशु हुआ है। देखने में भोला भला निरीह सा दिखने वाला... पिछले २-३ दिनों से देख रहा हूँ..कितने मजे में रह रहा है। न खाने ली चिंता ना नित्य क्रिया के लिए परेशानी। जब मन किया सो गए जब मन किया उठ गए। भूख लगी तो रोना शुरू और कोई न कोई दूध पिला देगा...माँ नही तो मामी नही तो नानी। अगर नित्य क्रिया करनी है तो बस कर दी और रोना शुरू। कोई तो साफ़ कर ही देगा॥ कितने मजे हैं..क्या ऐयाशी है देख कर कभी जलन होती है।



फ़िर ये सोचता हूँ की उस शिशु की क्या अपनी कोई इक्षा है? वो तो एक खिलोने की तरह है। जिसका मन आया उसे गोदी में उठा लिया..कभी खिलाया कभी जगा दिया कभी सुला दिया। कभी किसी और को गोद में दे दिया कभी कपड़े से अच्छे से लपेट दिया की सर्दी न लग जाए। इतनी सुविधा में रखते है उसे पर क्या उसकी कोई मर्जी है? वो तो पराधीन है। वो एक हिन्दी की कविता थी ना॥ "पराधीन सपनेहु सुख नही" तो क्या उसे सपने में भी सुख नही है? फ़िर उसे देख कर जो जलन हो रही है उसका क्या?



क्या हमारी जिन्दगी भी ऐसी ही नही है? जो हमारे पास नही होता उसे देख कर हम जलते रहते है पर उस वस्तू को प्राप्त करने के पीछे जो वेदना है, जिन परिस्तिथ्यो से वो गुजरा है जो बलिदान उसने दिए हैं..वो हमें कभी नही दीखते है। ऊपर की मलाई तो दिखती है पर उस मलाई को दूध से निकलने के लिए उसे कितना खोलाना पड़ा उसका क्या? अगर उस कीमत पे हमें वो सुविधाए चाहिए तो फ़िर क्या बात है?

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